۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞
हज़रत लूत व इब्राहीम अलैहि सलाम:
हजरत लूत हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के भतीजे हैं और उनका बचपन हज़रत इब्राहीम ही की निगरानी में गुजरा और उनकी नशरोनुमा हजरत इब्राहीम ही व तर्बियत में हुई।
मिस्र से वापसी:
हज़रत लूत अलैहि सलाम और उनकी बीवी हजरत इब्राहीम की हिजरत मे हमेशा उनके साथ रहे हैं और जब हजरत इब्राहीम मिस्र में थे, तो उस वक्त भी यह हमसफ़र थे। मिस्र से वापसी पर हजरत इब्राहीम फ़लस्तीन में आबाद हुए और हजरत लूत ने शर्के उर्दुन के इलाके में सुकूनत अख्तियार की। इस इलाके में दो मशहूर बस्तियां सदूम और आमूरा थीं।
कौमे लूत:
हज़रत लूत अलैहि सलाम ने जब शर्के उर्दुन (ट्रांस जॉर्डन) के इलाके में सदूम आ कर कियाम किया तो देखा कि यहां बाशिंदे फ़वाहिश और मासियतों में इतने पड़े हुए हैं कि दुनिया में कोई बुराई ऐसी न थी जो उनमें मौजूद न हो। दूसरे ऐबों और फहश कामों के अलावा यह क़ौम एक ख़बीस अमल में मुब्तेला थी, यानी अपनी नफ़्सानी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए वे औरतों के बजाए अमरद लड़कों से ताल्लुकात रखते थे। दुनिया की कौमों में उस वक्त तक इस अमल का क़तई रियाज न था। यही बदबख्त कौम है जिसने नापाक अमल की ईजाद की और इससे भी ज़्यादा शरारत, ख़बासत बेहयाई यह थी कि वे अपनी बदकिरदारी को ऐब नहीं समझते बल्कि ऐलानिया फ़न व मुबाहात के साथ उसको करते रहते थे।
तर्जुमा- ‘और (याद करो) लूत का वाकिया जब उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम ऐसे फ़हश काम में लगे हुए हो जिसको दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया, यह कि बेशक तुम औरतों के बजाए अपनी शहवत को मर्दो से पूरी करते हो, यक़ीनन तुम हद से गुजरने वाले हो।’ [अल-आराफ 7 : 80-81]
हज़रत लूत और तब्लीगे हक:
….. इन हालात में हज़रत लूत अलैहि सलाम ने उनको उनकी बेहयाइयों और ख़बासतों पर मलामत की और शराफ़त और तहारत की जिंदगी की रग्बत दिलाई और नर्मी के साथ जो मुस्किन तरीके हो सकते थे, उनसे उनको समझाया और पिछली कौम की बदआमालियों के नतीजे बताकर इबरत दिलाई, मगर उन पर बिल्कुल असर न हुआ, बल्कि कहने लगे
तर्जुमा- ‘लूत की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि कहने लगे इन (लूत और उसके खानदान) को अपने शहर से निकाल दो। ये बेशक बहुत ही पाक लोग हैं। [आराफ़ 7:72]
….. ‘बेशक ये पाक लोग हैं’, कौमे लूत का यह मज़ाकिया जुम्ला था, गोया हज़रत लूत अलैहि सलाम और उनके खानदान पर तंज करते और उनका ठट्ठा उड़ाते थे कि बड़े पाकबाज़ हैं, इनका हमारी बस्ती में क्या काम या मेहरबान नसीहत करने वाले की मेहरबान नसीहत से गैज़ व ग़ज़ब में आकर कहते थे कि अगर हम नापाक और बेहया हैं और वे बड़े पाकबाज़ हैं, तो इनका हमारी बस्ती से क्या वास्ता, इनको यहां से निकालो।
….. हजरत लूत अलैहि सलाम ने फिर एक बार भरी महफ़िल में उनको नसीहत की और फ़रमाया, ‘तुमको इतना भी एहसास नहीं रहा है कि यह समझ सको कि मर्दो के साथ बेहयाई का ताल्लुक, लूट-मार और इसी किस्म की बद-अखलाकियां बहुत बुरे आमाल हैं, तुम यह सब कुछ करते हो और भरी महफ़िलों और मजलिसो में करते हो और शर्मिंदा होने के बजाए बाद में उनका ज़िक्र इस तरह करते हो कि गोया ये कारे नुमायां हैं जो तुमने अंजाम दिए हैं।
तर्जुमा- क्या तुम वहीं नहीं हो कि तुम मर्दो से बदअमली करते हो, लोगों की राह मारते हो और अपनी मजलिसो में और घर वालों के सामने फहश काम करते हो। [अल-अनकबूत 29:29]
….. कौम ने इस नसीहत को सुना तो ग़म व गुस्से से तिलमिला उठी और कहने लगी, लूत! बस ये नसीहतें और इबरतें खत्म कर और अगर हमारे उन आमाल से तेरा खुदा नाराज़ है तो वह अज़ाब ला कर दिखा, जिसका जिक्र करके बार-बार हमको डराता है और अगर तू वाकई अपने कौल में सच्चा है तो हमारा और तेरा फ़ैसला अब हो जाना ही जरूरी है।
तर्जुमा- ‘पस उस (लूत) की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि वे कहने लगे, तू हमारे पास अल्लाह का अज़ाब ले आ, अगर तू सच्चा है।’[अल-अनकबूत 29:29]
हजरत इब्राहीम और अल्लाह के फ़रिश्ते:
….. इधर यह हो रहा था और दूसरी तरफ़ हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के साथ यह वाकिया पेश आया कि हज़रत इब्राहीम जंगल में सैर कर रहे थे उन्होंने देखा कि तीन लोग खड़े हैं। हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम बड़े मुतवाज़े और मेहमान नवाज़ थे और हमेशा उनका दस्तरख्वान मेहमानों के लिए फैला रहता था, इसलिए इन तीनों को देखकर वह बहुत खुश हुए और उनको अपने घर ले गए और बछड़ा जिब्ह करके तिक्के बनाए और भून कर मेहमानों के सामने पेश किए, मगर उन्होंने खाने से इंकार किया। यह देखकर हज़रत इब्राहीम ने समझा कि ये कोई दुश्मन हैं जो दस्तूर के मुताबिक़ खाने से इंकार कर रहे हैं और कुछ डरे कि ये आखिर कौन हैं?
….. मेहमानों ने जब हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की बेचैनी देखी तो उनसे हँस कर कहा कि आप घबराएं नहीं। हम अल्लाह के फ़रिश्ते हैं और कौमे लूत की तबाही के लिए भेजे गए हैं, इसलिए सदूम जा रहे हैं।
….. जब हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम को इत्मीनान हो गया कि ये दुश्मन नहीं हैं, बल्कि अल्लाह के फ़रिश्ते हैं, तो अब उनके दिल की रिक्क़त, हमदर्दी का जज्बा और मुहब्बत व शफ़क़त की फ़रावानी ग़ालिब आई और उन्होंने लूत अलैहि सलाम की ओर से झगड़ना शुरू कर दिया और फ़रमाने लगे कि तूम उस कौम को कैसे बर्बाद करने जा रहे हो, जिसमें लूत अलैहि सलाम जैसा अल्लाह का बरगजीता नबी मौजूद है और वह मेरा भतीजा भी है।
….. फ़रिश्ते ने कहा, हम यह सब कुछ जानते हैं, मगर अल्लाह का यह फैसला है कि कौमे लूत को अपनी सरकशी, बदअमली, बेहयाई और फहश वालों पर इसरार की वजह से जरूर हलाक की जाएगी और लूत और उसका खानदान इस अज़ाब से महफूज रहेगा, अलबत्ता लूत की बीवी क़ौम की हिदायत और उनकी बद-आमालियों और बदअक़ीदगियों में शिरकत की वजह से क़ौमे लूत ही के साथ अज़ाब पाएगी।
….. ग़रज हजरत लूत अलैहि सलाम के हक पहुंचाने, भलाइयों का हुक्म देने और बुराइयों से मना करने का क़ौम पर मुतलक कुछ असर न हुआ और वह अपनी बद-अख़्लाक्रियों पर वैसे ही जमी रही। हज़रत लूत अलैहि सलाम ने यहां तक गैरत दिलाई कि तुम इस बात को नहीं सोचते कि मैं रात-दिन जो इस्लाम और सीधे रास्ते की दावत और पैग़ाम के लिए तुम्हारे साथ हैरान व परेशान हूं, क्या कभी मैंने इस कोशिश का कोई मुआवजा तलब किया, क्या कोई उजरत मांगी, किसी नज्र व नियाज का तलबगार हुआ। मेरी नज़रों में तो तुम्हारी दीनी व दुनियावी फलाह व सआदत इस के सिवा और कुछ भी नहीं है, मगर तुम हो कि जरा भी तवज्जोह नहीं करते।
….. मगर उनके अंधेरे दिलों पर इस कहने का तनिक भर भी असर न हुआ और वे हजरत लूत अलैहि सलाम को निकाल देने और पत्थर मार-मार कर हलाक कर देने की धमकियां देते रहे। जब नौबत यहां तक पहुंची और उनकी बुरी किस्मत ने किसी तरह अख़्लाक़ी जिंदगी पर आमादा न होने दिया, तब उनको भी वही पेश आया जो अल्लाह के बनाए हुए कानूने जजा का यकीनी और हतमी फैसला है, यानी बद किरदारियों और इसरार की सजा बर्बादी या हलाकत। ग़रज अल्लाह के फ़रिश्ते हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के पास से रवाना होकर सदूम पहुंचे और लूत अलैहि सलाम के यहां मेहमान हुए। ये अपनी शक्ल व सूरत में हसीन व खूबसूरत और उम्र में नवजवान लड़कों की शक्ल व सूरत के थे। हजरत लूत ने उन मेहमानों को देखा तो घबरा गए और डरे कि बदबख्त क़ौम मेरे इन मेहमानों के साथ क्या मामला करेगी, क्योंकि अभी तक उनको यह नहीं बताया गया था कि ये अल्लाह के पाक फ़रिश्ते हैं।
….. अभी हज़रत लूत अलैहि सलाम इस हैस-बैस में थे कि कौम को ख़बर लग गई और लूत अलैहि सलाम के मकान पर चढ़ आए और मुतालबा करने लगे कि तुम इसको हमारे हवाले करो। हज़रत लूत ने बहुत समझाया और कहा, क्या तुम में कोई भी ‘सलीमुल फ़िरत इंसान’ नहीं है कि वह इंसानियत को बरते और हक को समझे? तुम क्यों इस लानत में गिरफ्तार हो और नफ़्सानी ख्वाहिश पूरी करने के लिए फ़ितरी तरीका छोड़कर और हलाल तरीकों से औरतों को जीवन-साथी बनाने की जगह इस मलऊन बेहयाई पर उतर आए हो? ऐ काश! मैं ‘रुक्ने शदीद’ की जबरदस्त हिमायत कर सकता!
….. हज़रत लूत अलैहि सलाम की इस परेशानी को देखकर फ़रिश्तों ने कहा, आप हमारी जाहिरी शक्लो को देखकर घबराइए नहीं, हम अज़ाब के फ़रिश्ते हैं और अल्लाह के कानून ‘जज़ा-ए-अमाल‘ का फैसला इनके हक में अटल है, वह अब इनके सर से टलने वाला नहीं। आप और आप का ख़ानदान अज़ाब से बचा रहेगा, मगर आपकी बीवी बेहयाओं के साथ रहेगी और तुम्हारा साथ न देगी।
….. आखिर अजाबे इलाही का वक़्त आ पहुंचा, रात शुरू हुई तो फ़रिश्तो के इशारे पर हजरत लूत अलैहि सलाम अपने ख़ानदान समेत दूसरी ओर से निकल कर सदूम से रुख्सत हो गए और बीवी ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया और रास्ते से ही लौट कर सदूम वापस आ गई, रात का आख़िर आया तो पहले जो एक हौलनाक चीख़ ने सदूम वालों को तह व बाला कर दिया और फिर आबादी का तख्ता ऊपर उठाकर उलट दिया गया और ऊपर से पत्थरों की बारिश ने उनका नाम व निशान तक मिटा दिया और वही हुआ जो पिछली कौम की नाफरमानी और सरकशी का अंजाम हो चुका है
नाम और ख़ानदान –
हजरत याकूब 3 हज़रत इसहाक्र के दूसरे बेटे और हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के पोते हैं। इबरानी भाषा में हजरत याकूब का नाम इसराईल है। यह “इसरा’ (अन्द, गुलाम) और ईल (अल्लाह) दो शब्दों में बना है और अरबी में इसका तर्जुमा अब्दुल्लाह किया जाता है। इसी वजह से हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम के बेटे हजरत इस्हाक्र अलैहि सलाम से जुड़ा खानदान जो हजरत याकूब अलैहि सलाम यानी इसराईल की नस्ल से है, बनी इसराईल कहलाता है।
हज़रत याकूब का जिक्र कुरआन में –
कुरान में हजरत याकूब अलैहि सलाम का नाम दस जगह आया है। सूरः यूसुफ़ में जगह-जगह जमीरों और औसाफ़ के लिहाज से, कुछ दूसरी सूरतों में औसाफ़ के एतबार से उनका तज़किरा मौजूद है, असल में कुरआन पाक हज़रत याकूब अलैहि सलाम के जलीलुल-कद्र नबी, साहिबे सब्र व अजीमत और हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम के बुजुर्ग बाप होने की तरफ़ तवज्जोह दिलाता है।
हज़रत याकूब अलैहि सलाम अल्लाह के बरगजीदा पैग़म्बर थे और कन्आनियों के लिए भेजे गए थे। उन्होंने वर्षों इस खिदमत को अंजाम दिया। उनके बारह लड़के थे। खुद उनका और उनकी औलाद का जिक्र, हजरत यूसुफ़ से जुड़ा हुआ है, इसलिए तफसीलात हजरत यूसुफ़ के जिक्र में मौजूद हैं, जो आगे आता है।
ख़ानदान
………. हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम हज़रत याकूब अलैहि सलाम के बेटे और हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम के पड़पोते हैं। उनको यह शरफ़ हासिल है कि वह ख़ुद नबी, उनके वालिद नबी, उनके दादा नबी और परदादा हज़रत इब्राहीम अबुल अंबिया (नबियों के बाप) हैं। कुरआन में इनका जिक्र छब्बीस बार आया है और इनको यह भी फक्र हासिल है कि इनके नाम पर एक सूरः (सूरः यूसुफ़) कुरआन में मोजूद है जो सबक और नसीहत का बेनज़ीर जखीरा है, इसीलिए कुरआन मजीद में हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम के वाकिए को ‘अहसनुल कसस’ कहा गया है।
हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम का ख्वाब और यूसुफ़ के भाई
………. शुरू जिंदगी ही से हज़रत यूसुफ़ की दिमागी और फ़ितरी इस्तेदाद दूसरे भाइयों के मुकाबले में बिल्कुल जुदा और नुमायां थी। साथ ही हजरत याकूब अलैहि सलाम यूसुफ़ अलैहि सलाम की पेशानी का चमकता हुआ नूरे नुबूवत पहचानते और अल्लाह की वह्य के ज़रिए इसकी इत्तिला पा चुके थे। इन्ही वजह से वे अपनी तमाम औलाद में हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम से बेहद मुहब्बत रखते थे और यह मुहब्बत यूसुफ़ के भाइयों से बेहद शाक़ और नाकाबिले बरदाश्त थी।
………. और वे हर वक्त इस फ़िक्र में लगे रहते थे कि या तो हज़रत याकूब के दिल से इस मुहब्बत को निकाल डालें और या फिर यूसफ़ ही को अपने रास्ते से हटा दें, ताकि किस्सा पाक हो जाए। इन भाइयों के हसद पर ख्यालात को जबरदस्त ठेस उस वक्त लगी, जब यूसफ़ अलैहि सलाम ने एक ख्वाब देखा कि ग्यारह सितारे और सूरज व चांद उनके सामने सज्दा कर रह है। हजरत याकूब अलैहि सलाम ने यह ख्वाब सुना तो सख्ती के साथ उनको मना कर दिया कि अपना यह ख्वाव किसी के सामने न दोहराना, ऐसा न हो कि ” सुनकर तेरे भाई बुरी तरह पेश आएं, क्योंकि शैतान इंसान के पीछे लगा है। और तेरा ख्वाब अपनी ताबीर में बहुत साफ और वाजेह है, लेकिन हसद की भड़कती हुई आग ने एक दिन यूसुफ के भाइयों को उनके खिलाफ साजिश करने मजबूर कर ही दिया।
………. तर्जुमा- ‘उनमें से एक ने कहा, यूसुफ को क़त्ल न करो और उसको गुमनाम कुएं में डाल दो कि उठा ले जाए उसको कोई मुसाफिर, अगर तुमको करना ही है।‘ [युसूफ 12:10]
इस मशवरे के बाद सब जमा होकर हजरत याकूब की खिदमत में हाजिर हुए और कहने लगे-
………. तर्जुमा- ‘(ऐ बाप!) क्या बात है कि तुमको यूसुफ के बारे में हम पर एतमाद नहीं है, हालांकि हम उसके खैरख्वाह हैं।‘ [यूसुफ 12:11]
हजरत याकूब समझ गए कि उनके दिलों में खोट है।
………. तर्जुमा- ‘याकूब ने कहा, मुझे इससे रंज और दुख पहुंचता है कि तुम इसको (अपने साथ ले जाओ और मुझे यह डर है कि उसको भेड़िया खा जाए और तुम गाफिल रहो।‘ [यूसुफ 12:13]
यूसुफ के भाई ने यह सुनकर एक जुबान होकर कहा-
………. तर्जुमा- ‘अगर खा गया इसको भेड़िया, जबकि हम सब ताकतवर हैं, तो बेशक इस शक्ल में तो हमने सब कुछ गंवा दिया।‘ [यूसुफ 12:14]
कनान का कुंवां
………. ग़रज यूसुफ अलैहि सलाम के भाई यूसुफ़ को सैर कराने के बहाने ले गए और मश्विरे के मुताबिक उसको एक ऐसे कुएं में डाल दिया, जिसमें पानी न था और मुद्दत से सूखा पड़ा था और वापसी में उसकी कमीज को किसी जानवर के खून में तर करके रोते हुए हजरत याकूब अलैहि सलाम के पास आए और कहने लगे, ‘ऐ बाप! अगरचे हम अपनी सच्चाई का कितना ही यकीन दिलाएं, मगर तुमको हरगिज़ यकीन न आएगा कि हम दौड़ में एक दूसरे से आगे निकलने में लगे हुए थे कि अचानक यूसुफ को भेड़िया उठाकर ले गया।
………. हजरत याक्रूब अलैहि सलाम ने यूसुफ़ के लिबास को देखा तो खून से लथपथ था, मगर किसी एक जगह से भी फटा हुआ न था और न चाक दामां था, फौरन हकीक़त भांप गए मगर भड़कने, तान व तकनीम करने और नफ़रत व हकारत का तरीका बजाए पैग़म्बराना इल्म व फरासत के साथ यह बता दिया कि हकीकत की कोशिश के बावजूद तुम उसे छिपा न सके।
यूसुफ अलैहि सलाम और गुलामी
………. इधर ये बातें हो रही थीं, उधर हिजाजी इस्माईलियों का एक काफिला शाम से मिस्र को जा रहा था। कुंवां देखकर उन्होंने पानी के लिए डोल डाल यूसुफ को देखकर जोश से शोर मचाया “बशारत हो एक गुलाम हाथ आया।”
………. ग़रज इस तरह हजरत यूसुफ को इस्माईली ताजिरों के काफिले ने अपना गुलाम बना लिया और तिजारत के माल के साथ उनको भी मिस ले गए और बाजार में रिवाज के मुताबिक़ बेचने के लिए पेश कर दिया।
उसी वक़्त शाही ख़ानदान का एक रईस और मिस्री फ़ौजों का अफसर फ़ोतीफार बाजार से गुजर रहा था। उसने उनको खरीद लिया और अपने घर लाकर बीबी से कहा –
………. तर्जुमा- ‘देखो! इसको इज्जत से रखो, कुछ अजब नहीं कि यह हमको फायदा बख्शे या हम इसको अपना बेटा बना लें।‘ [यूसुफ 12:21]
फ़ोतीफार ने हजरत यूसुफ़ को औलाद की तरह इज्जत व एहतराम से रखा और अपने तमाम मामले और दूसरी जिम्मेदारियां उनके सुपुर्द कर दीं। यह सब कुछ अल्लाह की मंशा के मुताबिक हो रहा था।
………. तर्जुमा- ‘और इसी तरह जगह दी हमने यूसुफ को उस मुल्क में और इस वास्ते कि उसको सिखाएं बातों का नतीजा और मतलब निकालना और अल्लाह ताकतवर रहता है अपने काम में, लेकिन अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते।‘

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